वन्य प्राणी पिसूरी हिरण : Mouse Deer - Pisuri Mrig

Dr. Mulla Adam Ali
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Mouse Deer and it's species in Hindi by Dr. Parshuram Shukla, Wildlife in India, Bharatiya Vanya Jeev Mushak Hiran.

Mouse Deer : Indian Wildlife

mouse deer and species

Wildlife of India : विश्व में पिसूरी-मृग (Mooshak Hiran) की दो प्रमुख जातियां पायी जाती हैं। पहली एशिया का पिसूरी-मृग (Pisuri deer) और दूसरी अफ्रीका का पिसूरी-मृग। अफ्रीका का पिसूरी-मृग पश्चिमी और मध्य अफ्रीका के घने जंगलों में रहता है।

वन्य प्राणी- पिसूरी/पिसोरी हिरण

पिसूरी-मृग (Mouse Deer)

पिसूरी-मृग एक रोचक वन्य जीव है। जिस प्रकार शेर, सिंह, चीता, तेन्दुआ आदि बिल्ली परिवार के सदस्यों में बिल्ली सबसे छोटी होती है, उसी प्रकार हिरनों में पिसूरी मृग सबसे छोटा हिरन होता है। इसमें हिरन की सभी विशेषताएं पायी जाती हैं, किन्तु इसके हिरनों के समान मृगशृंग (एन्टलर्स) नहीं होते। इसका सिर छोटा तथा थूथन नुकीला और चूहे के समान होता है, इसीलिये इसे मूषक-मृग (Mouse Deer) भी कहते हैं।

पिसूरी-मृग हिरन है या नहीं? इस सम्बन्ध में जीव वैज्ञानिकों में मतभेद है। कुछ जीव वैज्ञानिकों का मत है कि यह कस्तूरी-मृग के समान एक हिरन है, क्योंकि कस्तूरी मृग के समान ही पिसूरी-मृग के भी ऊपर के जबड़ों में बाहर की ओर निकले हुए तथा नीचे की ओर झुके हुए एक जोड़ा कैनाइन दांत होते हैं और दोनों वन्य जीवों के सींग अथवा मृगशृंग (एन्टलर्स) नहीं होते। दूसरी ओर कुछ जीव वैज्ञानिक पिसूरी-मृग की आन्तरिक शारीरिक संरचना एवं बाह्म शारीरिक संरचना व विशेषताओं के आधार पर इसे हिरन न मान कर एक अलग प्रजाति का वन्य जीव मानते हैं। इनका मत है कि यह देखने में हिरन जैसा अवश्य लगता है, किन्तु वास्तव में यह सूअर और ऊंट का निकट सम्बन्धी है।

विश्व में पिसूरी-मृग की दो प्रमुख जातियां पायी जाती हैं। पहली एशिया का पिसूरी-मृग और दूसरी अफ्रीका का पिसूरी-मृग। अफ्रीका का पिसूरी-मृग पश्चिमी और मध्य अफ्रीका के घने जंगलों में रहता है।

एशियाई पिसूरी-मृग की पांच उपजातियां हैं। इनमें से केवल एक उपजाति भारत में पायी जाती है। अन्य उपजातियों के पिसूरी-मृग दक्षिणी पूर्वी एशिया के कुछ देशों, श्री लंका, बर्मा, मलाया आदि के जंगलों में देखने को मिलते हैं। मलाया में पिसूरी-मृग की दो उपजातियां पायी जाती हैं। ये हैं-छोटा पिसूरी-मृग और बड़ा पिसूरी-मृग । छोटे पिसूरी-मृग की नाक से लेकर पूंछ के अन्त तक की लम्बाई 40 सेन्टीमीटर से 45 सेन्टीमीटर तक होती है, जबकि बड़ा पिसूरी-मृग 65 सेन्टीमीटर से 75 सेन्टीमीटर तक लम्बा होता है। इसकी कंधों तक की ऊंचाई 30 सेन्टीमीटर से 33 सेन्टीमीटर तक हो सकती है। छोटे पिसूरी-मृग के गले पर सफेद रंग की तीन घारियां होती हैं, जबकि बड़े पिसूरी-मृग के गले की धारियों की संख्या 5 होती है। दोनों उपजातियों के पिसूरी-मृग एक ही प्रकार के जंगलों में एक साथ देखने को मिल जाते हैं। भारतीय पिसूरी-मृग तथा अन्य एशियाई पिसूरी-मृगों में प्रमुख अन्तर यह है कि भारतीय पिसूरी-मृग के शरीर पर सफेद चित्तियां होती हैं तथा गले और ठोड़ी पर बाल पाये जाते हैं, जबकि अन्य एशियाई पिसूरी-मृगों में इनका अभाव होता है।

भारत में पिसूरी-मृग दक्षिण भारत के जंगलों, पश्चिमी घाट के जंगलों, उड़ीसा के पूर्वी तट पर तथा मध्य प्रदेश और बिहार के 1800 मीटर तक की ऊंचाई वाले पथरीले, चट्टानी क्षेत्रों में पाया जाता है। यह छोटे-छोटे छायादार वृक्षों वाले कम घने जंगलों एवं शुष्क मैदानों में रहना अधिक पसन्द करता है। यह नदी या किसी विशाल जलस्रोत के निकट, घास अथवा झाड़ियों से ढंके हुए पथरीली चट्टानों वाले भागों में अपना निवास बनाता है। पिसूरी-मृग जंगलों में सरलता से नहीं देखा जा सकता, क्योंकि यह दिन-भर किसी बड़े पत्थर के नीचे, चट्टानों की दरारों में या किसी छोटी-सी गुफा में पड़ा रहता है और रात के समय निकलता है। यह बड़ा कायर और डरपोक होता है। अतः अपने आस-पास हल्की-सी आहट होने पर भी तुरन्त भाग कर किसी सुरक्षित स्थान में छिप जाता है। कभी-कभी प्रातःकाल पिसूरी-मृग के छोटे-छोटे झुण्ड़ कुछ पल के लिये दिखायी पड़ जाते हैं, किन्तु इसके पहले कि इसके चित्र लिये जायें या इसका अध्ययन किया जाये, ये झाड़ियों में ओझल हो जाते हैं।

पिसूरी-मृग एक बहुत छोटा तथा दुबला-पतला कमजोर हिरन है। इसकी कंधों तक की ऊंचाई 25 सेन्टीमीटर से लेकर 30 सेन्टीमीटर तक तथा वजन 3 किलोग्राम से अधिक नहीं होता। पिसूरी-मृग की शारीरिक संरचना इस प्रकार की होती है कि इसके शरीर का पिछला भाग अगले भाग से ऊंचा उठा हुआ मालूम पड़ता है। इसके शरीर के ऊपरी भाग तथा पीठ आदि का रंग बादामीपन लिये हुए हल्का भूरा होता है और इस पर हल्का पीलापन लिये हुए सफेद रंग की चित्तियां होती हैं। ये चित्तियां इसके शरीर के अगले भाग से आरम्भ हो जाती हैं और पूंछ की जड़ तक होती हैं तथा दूर से देखने पर लम्बी-लम्बी धारियों के समान मालूम पड़ती हैं। पिसूरी-मृग के शरीर का नीचे का भाग, पेट तथा दोनों जांघों के मध्य का भाग अन्य हिरनों के समान हल्का पीलापन लिये हुए सफेद रंग का होता है। इसकी त्वचा पर छोटे-छोटे मुलायम, पतले और घने बाल होते हैं, जो इसे एक सुन्दर एवं आकर्षक हिरन बना देते हैं। इसकी आंखें गहरी भूरी तथा कान सामान्य आकार से कुछ बड़े होते हैं। पिसूरी-मृग की पूंछ बहुत छोटी होती है और सदैव इसके शरीर से चिपकी रहती है। इसकी गर्दन के चारों ओर सफेद रंग की तीन धारियां होती हैं। इसी प्रकार की तीन धारियां शरीर के पिछले भाग में पुट्ठों के पास भी होती हैं। पिसूरी-मृग का सिर हिरन के समान होता है, किन्तु अन्य हिरनों से इसका सिर छोटा होता है तथा थूथन नुकीला व आगे की ओर थोड़ा-सा निकला हुआ होता है जिससे यह दूर से देखने पर चूहे जैसा मालूम पड़ता है। इसके हाथ-पैर शरीर की तुलना में छोटे तो नहीं होते किन्तु बहुत अधिक दुबले-पतले होते हैं, जिनसे यह अन्य हिरनों के समान तेज गति से भाग नहीं पाता। सम्भवतः यही कारण है कि यह दिन के समय हिंसक पशुओं से बचने के लिये किसी सुरक्षित स्थान पर छिपा रहता है। पिसूरी-मृग की एक प्रमुख विशेषता यह है कि अन्य हिरनों के समान इसके मुख और पैरों पर ग्रन्थियां नहीं होतीं। इस कारण भी बहुत से जीव वैज्ञानिक पिसूरी-मृग को हिरन नहीं मानते हैं।

bharatiya hiran mushak hiran

अन्य भारतीय हिरनों के समान पिसूरी-मृग के न तो सींग होते हैं और न ही मृगशृंग (एन्टलर्स) होते हैं। इनके स्थान पर ऊपर के जबड़े में दोनों ओर नीचे की तरफ बाहर निकली हुई दो कांपें होती हैं, जो इसके कैनाइन दांतों का ही विकसित रूप हैं। इसकी कांपें मुड़ी हुई, लम्बी और नुकीली होती हैं तथा निचले जबड़े के बाहर निकली हुई और नीचे की ओर झुकी हुई साफ दिखायी देती हैं। पिसूरी-मृग की कांपों की संरचना इस प्रकार की होती है, कि ये कस्तूरी मृग की कांपों की तरह नहीं मालूम पड़तीं, बल्कि जंगली सुअर के दांत अथवा ऊंट के कैनाइन दांतों जैसी मालूम पड़ती हैं। पिसूरी-मृग अपनी कांपों का उपयोग हिंसक पशुओं से अपनी सुरक्षा के लिये अथवा अपने साथ के नर पिसूरी-मृगों से लड़ने के लिये करता है। पिसूरी नर और मादा दोनों के कांपें पायी जाती हैं, किन्तु नर की कांपें बड़ी लम्बी विकसित और मजबूत होती हैं, जबकि मादा की कांपें इतनी छोटी होती हैं कि कभी-कभी दिखायी ही नहीं पड़तीं। सम्भवतः इसीलिये कुछ जीव वैज्ञानिकों ने तो यहां तक लिख दिया है कि मादा पिसूरी-मृग के कांपें नहीं होती हैं।

पिसूरी-मृग की एक अद्भुत विशेषता यह है कि इसके खुर विभाजित होते हैं। यह सबसे छोटा विभाजित खुरों वाला वन्य प्राणी (Artiodactyl) है। इसका प्रत्येक खुर दो भागों में विभक्त होता है तथा इसमें चार-चार विकसित उंगलियां होती हैं। अन्य विभाजित खुरों वाले प्राणियों के समान पिसूरी-मृग की मध्य की दो उंगलियां अधिक विकसित होती हैं तथा चलते समय इसके शरीर का पूरा भार इन्हीं पर रहता है। इसकी शेष दोनों उंगलियां भी विकसित होती हैं और चलते समय जमीन का स्पर्श करती हैं। यह अपने खुरों की नोकों के बल पर हमेशा इस प्रकार चलता है कि इसके चलने से कोई आवाज नहीं होती। पिसूरी-मृग में इस प्रकार के खुरों का पाया जाना तथा इसकी चाल इसके अत्यन्त प्राचीन वन्य-जीव होने का प्रमाण है।

पिसूरी-मृग को पानी से विशेष लगाव होता है। इसीलिये यह किसी नदी अथवा बड़े जलस्रोत के निकट अपना निवास बनाता है। यह सर्दियों में भी प्रतिवर्ष पानी पीता है, किन्तु पानी की खोज में अपने निवास से अधिक दूर नहीं जाता।

पिसूरी-मृग दिवाचर है। यह सूर्योदय होते ही चरना आरम्भ कर देता है और लगभग चार घन्टे चरता है। इसके बाद किसी पत्थर के नीचे, चट्टानों की दरारों में या गुफा आदि में आराम करता है। शाम होने पर यह पुनः अपने निवास से बाहर निकलता है और डेढ़-दो घन्टे चरने के बाद अपने निवास में वापस लौट आता है। यह खुले मैदानों में चरते समय अपने निवास के निकट ही रहता है। पिसूरी-मृग को वर्तमान परिस्थितियों ने दिवाचर होने के साथ ही साथ निशाचर भी बना दिया है। यह मानव बस्तियों के निकट वाले जंगलों में दिन के स्थान पर रात्रि के समय छोटे-छोटे झुण्ड बना कर चरने के लिये निकलता है। इसे दक्षिण भारत के जंगलों में मुख्यतया रात्रि में घनी झाड़ियों के मध्य से सतर्क होकर भोजन की खोज में आते-जाते देखा जा सकता है। इसका प्रमुख भोजन विभिन्न प्रकार की जंगली वनस्पतियां, घास, छोटी-छोटी झाड़ियों की पत्तियां तथा मुलायम कोंपलें आदि हैं। यह प्रायः जमीन पर गिरे हुए विभिन्न प्रकार के फल भी खाता है। मलाया में पाया जाने वाला पिसूरी मृग मांसाहारी होता है। यह कीड़े-मकोड़े, मछलियां तथा विभिन्न प्रकार के छोटे-छोटे जीव-जन्तुओं का मांस भी खाता है। भारतीय पिसूरी-मृग मांसाहारी है या नहीं? इस सम्बन्ध में अधिकारपूर्वक कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

पिसूरी-मृग के दांत इस प्रकार के होते हैं कि यह कठोर चीजों को भी सरलता से खा सकता है। वास्तव में पिसूरी-मृग एक जुगाली करने वाला वन्य प्राणी है। यह सम्भवतः विश्व का सबसे छोटा जुगाली करने वाला वन्य प्राणी है। पिसूरी मृग के जुगाली करने वाले जीवों के समान ऊपरी जबड़े में सामने के दांत नहीं होते। यह जुगाली करने वाले जीवों से कुछ भिन्न भी है, क्योंकि इसके पेट के तीन भाग होते हैं जबकि जुगाली करने वाले प्राणियों के पेट के चार भाग होते हैं। कुछ जीव वैज्ञानिकों ने पिसूरी-मृग को, इसके पेट की संरचना के कारण ही हिरन नहीं माना है। सामान्यतया हिरन के पेट की संरचना जटिल होती है, जबकि पिसूरी-मृग के पेट की संरचना बड़ी सरल होती है।

पिसूरी-मृग बड़ा सीधा-सादा और डरपोक प्राणी है। अतः जंगल का छोटे से छोटा हिंसक जीव इसे मार कर अपना आहार बना सकता है, किन्तु यह अपनी सतर्कता के कारण खतरे का आभास होते ही भाग कर निकट के किसी स्थान पर छिप जाता है और अपनी जान बचा लेता है। इसके साथ ही जंगली कुत्तों, भेड़ियों तथा इसी प्रकार के हिंसक जीवों द्वारा पीछा किये जाने पर यह बहुत तेजी से वृक्षों पर चढ़ जाता है और किसी कोटर में छिप कर बैठ जाता है। इस प्रकार सीधे खड़े वृक्षों पर चढ़ने का गुण विश्व के सम्भवतः किसी भी हिरन में नहीं पाया जाता।

पिसूरी-मृग का समागम-काल जून-जुलाई के महीनों में होता है। यह प्रायः अकेले विचरण करता है, किन्तु समागम-काल में पूरे समय जोड़े में रहता है। समागम-काल में इसके व्यवहार में कोई विशेष अन्तर नहीं आता है। यह न तो सांभर और कस्तूरी मृग आदि हिरनों के समान अपना सीमाक्षेत्र बनाता है और न ही कांकड़ के समान कोई आवाज निकालता है। पिसूरी-मृग इतना शान्त रहता है कि जंगल में इसकी आवाज कमी भी सुनाई नहीं देती। समागम-काल समाप्त होते ही, अर्थात् सर्दियां आरम्भ होते ही यह मादा से अलग हो जाता है और अगले समागम-काल तक एकान्त में विचरण करता है।

मादा पिसूरी-मृग का गर्भकाल चार महीने होता है। यह वर्षा ऋतु के अन्त में या सर्दियां आरम्भ होने के पहले अक्टूबर-नवम्बर के महीनों में किसी पत्थर के नीचे, पथरीली चट्टानों की दरारों के मध्य या प्राकृतिक गुफाओं में प्रायः एक साथ दो बच्चों को जन्म देती है। किन्तु कभी-कभी एक बच्चा होते हुए भी देखा गया है। मादा बच्चों को जन्म देने के लिये हमेशा ऐसे स्थान का चुनाव करती है, जो पूरी तरह सुरक्षित हो। यह प्रायः वही स्थान होता है जहां यह खतरे के समय आकर स्वयं छिपती है। जंगली कुत्ते, भेड़िया, सांप, चील और लोमड़ी आदि हिंसक जीव पिसूरी-मृग के बच्चों के शत्रु हैं। इन सबसे अपने बच्चों को बचाने का मादा पिसूरी-मृग पूरा प्रयास करती है और कभी-कभी तो इस प्रयास में वह स्वयं उनका शिकार हो जाती है। हिंसक जीवों के साथ ही स्थानीय निवासी भी पिसूरी-मृग का शिकार करते हैं तथा इसे मार कर खाते हैं।

पिसूरी-मृग हमेशा दुर्गम स्थानों में छिपा रहता है और बहुत कम ही खुले स्थानों में दिखायी देता है। यह एक छोटा वन्य-जीव है तथा इसकी शारीरिक संरचना इस प्रकार की होती है कि यह अपने आस-पास की चीजों में इतना मिल जाता है कि दूर से दिखायी भी नहीं देता। इसका स्वभाव भी बड़ा शर्मीला होता है तथा यह अधिकांश समय अकेले ही रहता है। इन सब कारणों से इसके समागम, प्रजनन और बच्चों के पालन-पोषण आदि की अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है।

जीव वैज्ञानिकों का मत है कि यह सीधा-सादा वन्य जीव है तथा इसे सरलता से पालतू बनाया जा सकता है और चिड़ियाघरों में रखा जा सकता है। चिड़ियाघरों में यह मानव द्वारा परेशान किये जाने पर धीमी गुर्राने की आवाज निकालता है जो अन्य हिरनों से पूरी तरह अलग होती है।

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