पिंजरा कितना बुरा : हिंदी कविता - प्रभा पारीक

Dr. Mulla Adam Ali
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Prabha Pareek Poetry

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Hindi Kavita Pinjara Kitna Bura: पढ़िए कविता कोश में प्रस्तुत है प्रभा पारीक की बेहतरीन कविता पिंजरा कितना बुरा। आजादी के विषय पर बेहतरीन हिंदी कविता पढ़े और शेयर करें।

How bad is the cage : Poetry

पिंजरा कितना बुरा


अब तो आया समझ हमें भी,

मुश्किल बंद पिंजरे में रहना।

समझ गए अब, जो दे जाए, खाना पीना

उसी में, खुश रहना, और फुदकना।

बंद करो ना इन पशु पक्षी को

तुम पिंजरे के अंदर,

आजाद गगन में उड़ने देना,

पंखों को फैलाकर।

आज हमे जो मिल रहा है,

उसको हम सिर धरते,

क्योंकि, हमें समझ है कल की 

बदल जाएगा मंजर,

पिंजरे में रहते 

बेजुबान बेचारे पशु पक्षी

कभी सपने में भी

आजादी की ना सोचें।

पशु बेचारे तो जंगल में

रहने लायक भी न रहते।

हे मानव! ये बात 

समझ लो तुम सब

प्रथ्वी पर प्रकृति ने

जिसको जहां बनाया

रह सकता सदा वहीं पर 

खुश, और आबाद

पशु पक्षी को तुम सदा 

रहने दो आजाद।


-  प्रभा पारीक

भरुच, गुजरात

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