कहाँ हूँ मैं : कविता - डॉ. रानी कुमारी उर्फ प्रीतम

Dr. Mulla Adam Ali
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Dr. Rani Kumari (Urf Pritam) Poetry

कहाँ हूँ मैं?


मेरी स्मृति में तुम,

मेरी जागृति में तुम ।

मेरी अनुभूति में तुम, 

चिर स्पन्दन में तुम

हृदय की गहराई में तुम ।


पर तुम हो जहां, 

वहाँ मैं थी भी नहीं ।

तुम्हारे मन में नहीं मैं,

जज़्बातों में नहीं मैं ।

तेरे तन में भी नहीं मैं,

तुम्हारी आंखों में नहीं मैं, 

एहसासों में भी नहीं मैं,

तेरे हृदय में झांकी तो 

दिखी वहाँ भी नहीं मैं।


फिर तलाशी मैंने स्वयं 

को तेरे ही इर्द-गिर्द।

इल्म हुआ तब मुझे,

हूँ कोसों दूर मैं तेरे 

ही मन से, फिर सोचा 

मैंने आखिर कहीं तो 

होंगी मैं, पुनः तेरे दिल 

के दरवाजे पर दी दस्तक मैंने,

महसूस हुआ दिल था 

ही नहीं वो, पाषाणों को 

भला होता कहां कुछ

भी एहसास, धड़कते नहीं

वो कभी किसी के लिए भी ।

वो धड़कते है फिर भी

बस तेरे जीने के लिए ।

लौटी मैं वहां से बेगानों

की तरह, भला श्मशानों

से है लौटा कोई भी कुछ

लेकर, वाकिफ़ हूँ मैं इससे

खोया ही है सभी ने, 

वीरानों से लौटकर

वीरानों मे ही खोयी मैं।

आखिर खुद को ही खोकर

सभी ने ही है पाया।

भला मैं अपवाद क्यूँकर 

बनती, ज़माने ने मुझे ये 

खूब जमकर सिखाया।


- डॉ. रानी कुमारी (उर्फ प्रीतम)

 कवयित्री, लेखिका

जबलपुर (मध्य प्रदेश)

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