हमारे वैज्ञानिक : आर्किमिडीज़

Dr. Mulla Adam Ali
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Archimedes

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महान वैज्ञानिक आर्किमिडीज़ : आज आपके लिए प्रस्तुत है यूनानी गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी, अभियंता, आविष्कारक और खगोल विज्ञानी सेराक्यूस के आर्किमिडीज़ की जीवन कथा, आर्किमिडीज़ का सिद्धान्त, सिद्धांत की व्याख्या, सोने में मिलावट, यान्त्रिक आविष्कार आदि जानकारी, पढ़ें और साझा करें आर्किमिडीज़ की सच्ची कहानी हिंदी में।

Hamare Vaigyanik : Archimedes

आर्किमिडीज़ की कहानी

आज से लगभग दो हज़ार वर्ष से भी पूर्व की घटना है। एक दिन साइराक्यूज नगर के निवासियों ने चकित होकर देखा कि एक नंगा-धड़ंगा मनुष्य "पागया पागया" पुकारता हुआ बीच बाज़ार दौड़ा चला जा रहा है। लोगों ने समझा, कि पागल होगा। किन्तु जब उन्हें इस बात का पता चला कि वह प्रसिद्ध गणितज्ञ आर्किमिडीज़ था तो उनके आश्चर्य की कोई सीमा ही न रही।

आर्किमिडीज़ के क्षणिक पागलपन की यह घटना विश्व के इतिहास मे अनूठी है। यह कथा इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि इस जगत-विख्यात वैज्ञानिक का मस्तिष्क जब किसी समस्या को हल करने में लग जाता था तो उसे किसी बात की सुध नहीं रहती थी। यही तल्लीनता अन्त में उसमें मृत्यु का कारण भी बन।

जीवन कथा

आर्किमिडीज़ का पिता फिडियस यूनान का रहने वाला था और खगोल विद्या का प्रकाँड पंडित था। वह इटली के दक्षिणवर्ती द्वीप सिसली के साइराक्यूज़ नामक नगर में रहता था। यहीं आज से लगभग बाईस सौ वर्ष पूर्व आर्किमिडीज़ ने जन्म लिया।

इतने प्राचीन समय के इतिहास में मुख्य घटनाओं के अतिरिक्त छोटी-मोटी बातों का पता लगाना प्रायः असम्भव है। यही कारण है कि आर्किमिडीज़ के जीवन के विषय में बहुत अधिक पता नहीं चलता । ईसा की प्रथम शताब्दी में प्ल्यूटार्क द्वारा लिखित जीवन चरित्रों से ही कुछ बातें ज्ञात होती है।

आर्किमिडीज़ की शिक्षा-दीक्षा मिश्र देश के सिन्दरिया नगर में हुई और युवास्था तक वहीं रहने के उपरान्त वह साइराक्यूज के सम्राट हीरो का अभिन्न मित्र था या यूं कहिये कि उसकी सभा का एक रत्न था।

आर्किमिडीज़ का सिद्धान्त

भौतिक विज्ञान में आर्किमिडीज़ का एक महत्वपूर्ण स्थान है। वैज्ञानिक महत्व के अतिरिक्त इसका ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं जो बाजार में नंगा दौड़ने की घटना इसी के साथ संबंधित है। कहा जाता है कि जब सम्राट का मुकट बन कर आया तो उसे सन्देह हुआ कि सुनारों ने सोने में कुछ खोट मिला दिया है। आर्किमिडीज़ तो उसकी सभा, में था ही और उसकी असाधारण प्रतिभा के अनेक प्रमाण भी अब तक मिल चुके थे, अतः उसी को यह कार्य सौंपा गया कि मुकट के सोने में मिलावट का पता लगाए। उस काल मे शायद कसौटियां न होती होंगी, या यह भी संभव है कि हीरो यह जानने का इच्छुक हो कि मिलावट कितनी है। आज आर्किमिडीज़ का सिद्धान्त पुस्तकों में लिखा रहने पर भी हर एक व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं कि वह यह बता सके कि किसी धातु मे मिलावट है अथवा नहीं। अतः अतीत काल में जब कि विज्ञान के कोई सिद्धान्त निश्चित नहीं थे यदि आर्किमिडीज़ को इस समस्या पर अनेक रात्रि जागते हुए बितानी पड़ी तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हर समय यही समस्या उसके मस्तिष्क में चक्कर काटती रहती थी।

"पा गया पा गया"

एक दिन इसी विचार में निमग्न आर्किमिडीज़ सार्वजनिक हम्माम में स्नान करने गया। जैसे ही वह कपड़े उतार कर भरे हुए टब में उतरा कि टब का कुछ जल बाहर निकल गया। बस फिर क्या था उसके मस्तिष्क ने तुरन्त ही इस तथ्य को पकड़ लिया और दौड़ निकला। उसके प्रसिद्ध सिद्धांत की जन्म-कथा का आरम्भ यहीं से होता है।

सिद्धांत की व्याख्या

आर्कमिडीज के सिखान्त के अनुसार जब कोई वस्तु जल में डुबोई जाती है तब एक तो वर्तन का जल कुछ ऊपर उठ जाता है और दूसरे उस वस्तु का भार कुछ कम प्रतीत होता है। उन दोनों में यह संबंध है कि वस्तु का भार उतना ही कम होता है जितना जल ऊपर उठता है। जल तथा अन्य तरल पदार्थ में वस्तुओं का भार कम प्रतीत होता है। तरल पदार्थों की यह उछाल वस्तु के फैलाव पर निर्भर होती है। यदि वस्तु खूब फैली हुई हो तो उस पर जल की उछाल अधिक हो जाती है और वह तेरती रहती है। उदाहरणार्थ लोहे का टुकड़ा जल में डूब जाता है किन्तु यदि उसे फैलाकर नाव के आकार का बना दें तो वह तैरने लगता है। हलकी वस्तुओं का फैलाव मोटी वस्तुओं की अपेक्षा अधिक होता है।

सोने में मिलावट

सोना एक दुष्प्राप्य धातुओं के अतिरिक्त सबसे भारी वस्तु है। अतः अन्य हल्की धातुओं की अपेक्षा इस पर पानी की उछाल कम होती है, अर्थात यदि एक ही तोल के सोने तथा तांबे के टुकड़े पर जल की उछाल अधिक होगी। इस प्रकार जल में तोलने पर सोने में मिलावट होगी तो मिली हुई वस्तु पर भी जल की उछाल असली सोने से अधिक होगी।

कल्पना कीजिए कि हमें अपनी अंगूठी की परीक्षा करनी है। सर्वप्रथम अंगूठी को कांटे में तोल कर उसका भार प्रतीत करेंगे फिर उसको एक धागे में बाँध कर कांटे के एक पलड़े से लटका देंगे और जल में डूबी रहे। अब जल में लटकी हुई अंगूठी को तोल लेंगे जिससे यह प्रतीत हो जायगा कि कितना भार कम हुआ। इसके उपरान्त हम अंगूठी की तोल के अनुरूप असली सोने का टुकड़ा लेकर उसे भी जल में तोलेंगे। यदि इसका भार भी उतना ही कम होता है तो अंगूठी असली सोने की है, अन्यथा उसमें मिलावट है। गणित द्वारा यह भी बतलाया जा सकता है कि इस मिलावट का परिणाम क्या है किन्तु यह प्रयोग केवल ठोस वस्तुओं पर ही कर सकते हैं। आर्किमिडीज़ ने इसी रीति से हीरो के मुकट की परीक्षा की थी।

यान्त्रिक आविष्कार

आर्किमिडीज़ के यान्त्रिक आविष्कारों का भी महत्त्व है। उनमें यन्त्र-शास्त्र के सिद्धान्त छिपे हुए हैं। उनके आधार पर आज के युग में बड़ी मशीनें बनाई गई हैं। मशीन का साधारण रूप "लीवर" या बोझा उठाने वाली हलवानी माना गया है। इसके सिद्धान्त को सर्वप्रथम आर्किमिडीज़ ने ही निकाला था और उसने ही इसका व्यावहारिक रूप में उपयोग किया, यही अनुमान किया जाता है। इसके आधार पर ही उसे बड़ी बोझा उठाने वाली मशीनों को बनाने में सफलता प्राप्त हुई। इसी के आधार पर उसने घिर्रियाँ बनाई, जो कि क्रेनों के रूप में कार्य करती हैं और जिनकी सहायता से बड़े-बड़े भारी पत्थर आदि सुगमता से ही उठा लिये जाते है।

हीरो के जहाज के पेंदे में पानी भर जाया करता था। उस पानी को निकालने के लिये आर्किमिडीज़ ने एक यन्त्र बनाया था जो 'आर्किमिडीज़ क्र' के नाम से विख्यात है। इसी प्रकार उसने और भी यन्त्र बनाये जो मानव जाति के लिये बड़े उपयोगी सिद्ध हुए हैं।

साइराक्यूज़ का घेरा

साइराक्यूज़ की स्थिति ऐसी थी कि सदैव ही उस पर आक्रमणों का भय रहता था। हीरो को यह चिन्ता बराबर लगी रहती थी कि वह अपने देश की रक्षा किस प्रकार कर सकता है। क्या कोई ऐसा उपाय निकल सकता है जिससे वह उसकी रक्षा का प्रबन्ध कर सके ।

हीरो ने अपने इस विचार को आर्किमिडीज़ से प्रकट किया। वह उसकी इच्छा पूर्ण करने के लिये परिश्रम करने लगा और अपने प्रयास में सफल भी हुआ । जब रोमन सेनापति मार्सिलस ने साइराक्यूज़ पर आक्रमण किया तो उसका सामना करने के लिए सिसली के तट पर आर्किमिडीज़ के निर्माण किये हुए अनेक बड़े-बड़े भीमकाय यंत्रों का पहले से ही प्रबन्ध था। कुछ यंत्र लकड़ी की बड़ी-बड़ी सोटें उछाल-उछाल कर इस तेज़ी से फेंकते थे कि जिस जहाज़ पर भी वह गिर जातीं, वही जहाज़ समुद्र में चला जाता। कुछ यंत्र ऐसे थे जिनसे जहाजों के बड़े-बड़े आँकड़े निकल जाते थे और आपस में एक दूसरे से टकरा कर चकनाचूर हो जाते थे। इन सब यंत्रों की सहायता से उसने अपने देश की रक्षा की और उसे दासता की जंजीरों में न जकड़ने दिया। उसके यंत्रों को देख कर मार्सिलस के चतुर से चतुर इंजीनियरों के आश्चर्य की सीमा न रही। मार्सिलस ने विवश हो कर साइरक्यूज़ का घेरा उठा लिया।

साइराक्यूज़ का पतन

आर्किमिडीज़ के यन्त्रों के कारण तीन वर्ष तक मार्सिलस किसी प्रकार भी उस पर आक्रमण न कर सका । अन्त में मार्सिलन ने यह आशा त्याग दी कि वह युद्ध में विजयी होगा। अब उसने धोखेबाज़ी का सहारा लिया और उसकी आशा पूरी हुई और उसने साइराक्यूज़ को विजय कर लिया।

आर्किमिडीज़ की मृत्यु

साइराक्यूज को विजय करने के पश्चात् मार्सिलस यह इच्छा हुई कि वह आर्किमिडीज़ के दर्शन करे, उसका स्वागत करे और ऐसे महान व्यक्ति को जिसने

तीन वर्ष तक अपने देश की रक्षा की, सब प्रकार से आदर दे। अपनी इस इच्छा को पूर्ण करने के लिये उसने एक सैनिक को चुना, उसे क्या पता था कि उसे यह आदेश क्यों दिया गया है। वह तो अपनी बुद्धि के अनुसार यही समझता था कि आर्किमिडीज़ बड़ा अपराधी है। उसका अपराध अक्षम्य है और उसे इसके लियं अवश्य ही दण्ड भोगना पड़ेगा।

वह सैनिक इस सन्देश को लेकर आर्किमिडीज़ के पास पहुँचा। उसे युद्ध के परिणाम का तनिक भी पता - न था। वह गणित की एक उपपत्ति को सिद्ध करने के विचारों में मग्न था। सैनिक ने उसे सेनापति का आदेश कह सुनाया और कहा कि मेरे साथ शीघ्र चलो। उसकी यह बातें आर्किमिडीज़ की समझ में न आई। वह बोला, "मैं नहीं जानता सेनापति कौन है और उसने मुझे क्यों बुलाया है? मेरा उससे क्या प्रयोजन? जाओ, मुझे अवकाश नहीं। मैं इस समय गणित का प्रश्न निकाल रहा हूँ।" सैनिक इस बात को सहन न कर सका। वह तो उसे लेने के लिये ही आया था, उसे इस बात की क्या चिन्ता कि वह जीवित जाय अथवा उसका शरीर ही ले जाय। वह अपने आदेश का अपमान कैसे सहन कर सकता था। उसके मस्तिष्क में केवल यही बात चक्कर काट रही थी कि वह अपने कर्त्तव्य का पालन अवश्य करेगा। उसने तुरन्त ही अपनी तलवार आर्किमिडीज़ के हृदय में घोप दी और वह महान पुरुष सदा के लिये संसार से चल बसा ।

प्लटार्क लिखता है कि मार्सिलस को जिस समय आर्किमिडीज़ की हत्या का समाचार मिला तो वह शोक आतुर हो उठा। उसने पापी सैनिक की ओर देखा तक नहीं । मार्सिलस ने आर्किमिडीज़ की अन्त्येष्टि क्रिया बड़े सम्मानपूर्वक की उसके कुटुम्बियों को आर्थिक सहायता प्रदान की और उनका सत्कार किया।

महान गणितज्ञ

आर्किमिडीज़ अपने समय का एक महान अविष्कारक था। उसकी कीर्ति उसके अविष्कारों के कारण ही हुई, किन्तु इस युग के विज्ञानवेत्ता आर्कमिडीज़ को एक महान् गणितज्ञ मानते हैं। वास्तविक बात तो यह है कि आर्किमिडीज़ स्वयं भी अपने आप को गणितशास्त्र के पथ का पथिक ही मानता था। उसे गौरव और कीर्ति की तनिक भी लालसा न थी। उसने यह भी आज्ञा न दी कि उसके आविष्कारों को लिपिबद्ध कर दिया जाय। ऐसा अनुमान किया जाता है कि वह विज्ञान के इस भौतिक उपयोग को शुद्ध विज्ञान के महान उद्देश्य की भावना के विरुद्ध समझता था। प्लूटार्क लिखता है- "आर्किमिडीज़ यन्त्र-शास्त्र और साधारण उपयोग की वस्तुएं निर्माण करने वाली प्रत्येक कथा पर ध्यान देना एक हीन और घृणित कार्य समझता था। उसे केवल उन्हीं मानसिक कल्पनाओं में आनन्द आता था जिनका जीवन की आवश्यकताओं से कोई सम्बन्ध न होता था, किन्तु जिनमें सत्य और उनके प्रयोग से उत्पन्न होने वाली आन्तरिक श्रेष्ठता छिपी रहती थी।"

आर्किमिडीज़ एक महान् पुरुष था। उसे सम्पत्ति, कीर्ति, यश आदि किसी बात की लालसा नही। उसने अपने सुख-चैन की भी चिन्ता न की, और न ऐश्वर्यशाली जीवन ही व्यतीत किया। उसके जीवन का केवल एक ही लक्ष्य था-निरपेक्ष विज्ञान साधना।

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