प्रश्न मुद्रा में विषमता के अंधेरे : ग्रहण काल एवं अन्य कविताएँ

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Poetry Collection Book Grahan Kaal Evam Anya Kavitayen by Dr. Razia, Hindi Kavya Sangrah Book Review by B. L. Achha ji, Hindi Kavita Sangrah.

Grahan Kaal Evam Anya Kavitayen grahan kaal evam anya kavitayen   प्रश्न मुद्रा में विषमता के अंधेरे

'ग्रहण काल और अन्य कविताएं'

पुस्तक : ग्रहण काल एवं अन्य कविताएँ
लेखिका : डॉ. रजिया
प्रकाशक : सृजनलोक प्रकाशन, नई दिल्ली
समीक्षा : बी. एल. आच्छा
प्रकाशन वर्ष- 2024
मूल्य -सजिल्द ₹350/-

ग्रहण काल एवं अन्य कविताएँ (समीक्षा)

       डॉ. रजिया का पहला काव्य संग्रह 'ग्रहण‌काल और अन्य कविताएँ' शीर्षक ही आकर्षित करता है। और पढ़ते-पढ़ते लगता है कि यह नारी अस्मिता के उद‌यकाल की चेतना से भरापूरा है। पर केवल नारी ही क्यों, ये कविताएँ पन्नी बीनकर परिवार का पेट पालते बच्चों की जिन्दगी के ग्रहण काल के संघर्षों और भीतरी चीखों को भी उतना हो मुखर करती हैं। ये सारी कविताएँ, समाज की निचली परत की वेदना और संघर्षी को व्यक्त करती हैं, जो घर-परिवार ,समाज , सरकारी व्यवस्था या धर्म संस्कृति की दृष्टि से उपेक्षित हैं। और वे भी जो अपनी ही जमीन और हिस्सेदारी से बेदखल।

       यह सच है कि गरीब फुटपाथों- रेल पटरियों के दाएँ-बाएँ अपनी खपरैल झोपडड़पट्‌टियां बसा लेते हैं। बरसों तक कोई नहीं देखता, पर बुलडोजर जब आता है तो इन अवैध अतिक्रमणों पर बसी जिन्दगी को उखाड़ फेंकता है।बेरोजगार युवाओं से आकांक्षाओं के बीच लाचारी का दर्दीला स्वर और किसानी -मजदूरी की व्यथाओं के एहसास इन कविताओं में मुखर हैं। कानूनों के बावजूद अपराध के जंगल जब तब सुर्खियाँ बन जाते हैं। समाज और परिवार के टूटते-बिखरते ताने-बाने, राग-द्वेषों के शिकार बन जीवन की समरसता को रखो देते है-" "जलता शहर / उठता धुआं/ बलात्कार हत्याएँ/सब देखकर हम साध लेते हैं/चुप्पी /क्योंकि हम यहाँ सिर्फ /शतरंज के मोहरे हैं।"

      इन कविताओं में नारी अस्मिता का मुखर स्वर है। अदायगी में तेजाबी भले ही न हो, पर सादगी में विवशता का बयान है।मर्दों से सवालिया होती स्त्री पूछती है-"तुम्हारी अब तक की करतूतों के इतिहास पर / एक पूरी किताब रच देंगी जब स्त्रियां/ लिखेंगी... दिल की सारी कड़‌वाहट /पर सच्चाई के बाद भी/ न लिखती हैं, माँगती हैं/ तुमसे कभी पवित्रता का सर्टिफिकेट।"

      पर इन कविताओं में अनेक स्त्री-पाठ हैं। कभी नौकरीपेशा तमिल स्त्रियों का सादगी और परंपरा निर्वाह के साथ मिलजुलकर गयियाते- खाते हुए इडली-डोसा-श्रोतर दही-भात का चित्र।कभी कॉलेज आती लडकियों की बॉडी लैंग्वेज में पसरी निर्मल भाव वाली सुन्दरता । कभी अपने सपनों को पूरा करने के लिए लोहा लेती आई साहसिक स्त्री का पाठ। कभी फूल सी कोमलता में पहाड़ से दुखों के बीच घर संवारती स्त्रियाँ। पर कवयित्री उत्तर आधुनिकता में स्त्री के स्वच्छंद पाठ पर लगाम भी लगाती है-" रिश्तों से आजाद होने की चाहत में / स्वयं अपने ही कुतरती रहती है पर/और उड़ने की चाहत में/ लहूलुहान कर लेती है अपना अस्तित्व।"

       इन कविताओं में प्रेम का स्वर हर कहीं उभरा है। यह चाहे दांपत्य राग हो, जातीय समरसता की चाहत हो,प्रेम का गर्लफ्रेंडी संस्करण हो, विश्वास में प्रेम की साँसों की मुरीद हो,नीम- सी जबान में प्रेम की रसगुल्ले-सी चाहत हो। पर यह प्रेम जितना मन्नत के धागों से बंधा है, उतना ही रस्म- रिवाजों से मुक्त विश्वास औरआकांक्षाओं में बसा है। प्रेम के दांपत्य राग से अलग सामाजिक-धार्मिक जातीय सौमनस्य, के भाव भी इन कवि‌ताओं में गहराई से उभरे हैं- "चाहे तहखानों में बंद बंदकर दो कर दो/ धर्म जाति की कितनी ऊँची कर दो दीवार/ फिर भी जब तक हैं दुनिया में करते रहेंगे प्रेम/क्यों के इस नश्वर दुनिया में/ जिन्दा एहसास है प्रेम।"

       यही प्रेम इस देश की संस्कृति, उत्सव प्रियता के रंग-राग, प्रकृति से सम्मोहन और संस्कारों भी उदात्तता में आए है। इसीलिए होली-ईद के रंग भी बहुत छिटके हैं-"होली के रंगों से /पकवानों के स्वाद से हो रहे लबरेज/ईद में सेवियों के साथ बनती है/ प्यार मोहब्ब्त की सौगात। " ये उत्सवी रंग और रिश्ते केवल औपचारिकता के दिवसों में नहीं बल्कि -" आपके होने का एहसास/ भर दे उनमें जीने की चाह / हां तभी, हम बचा पाएँगे/ रिश्तों में प्रेम।"

      रज़िया की कविताओं में पर्यावरण की चिंता और मान‌वेतर पशु- पक्षियों से प्रेम की आकांक्षा गहरी है-"छोटी-सी जिन्दगी / हंस जिएं/पंख लगाकर उड़ें/आसमान को छुएँ /मौज में जीएं।"बचपन और स्मृतियों का आकाश खूब उभरा है। बारिश के दोस्तों के संग छपाक- छपाक और गर्म पकौड़ों का स्वाद अब आधुनिक जीवन में इतिहास- से बन गये हैं।पर टी-प्वाइंट का गुमटी-चेहरा कितनी रंगत जमा जाता है- " बावजूद इसके। उनकी छोटी छोटी शरारतें/निश्चल मुस्कान / उनके गीतों के बोल /मन पर जीवन के रंग बिखेर जाती है/ भर देते हैं मन में नई ऊर्जा ।" यही जीवन को रंगों का केन्द्र बना जाती है।

     इस संग्रह में अंडमान का प्रकृति सौंदर्य, जीवन और स्मृतियां प्रभावी हैं। 'हैवलॉक', 'कालापानी' ',पधारो हमारे अंडमान ' जैसी कविताओं में प्रकृति बिंब इतिहास और स्मृतियों के रंग उभरे हैं-"रात अंधेरी जुगनू टिमटिमाये/जंगल का सन्नाटा/ हवा सन-सन/समुद्र की रुन-झुन /जैसी प्रेमिका की पायल की झुन- झुन। बम्बू या बैंत का हट, पूस की छत/ ऐसा ही है अंडमान का छोटा- सा द्वीप हैवलॉक का।"

     यों इन कविताकों में मुर्दा शांति की निष्क्रियता है,पर चैतन्य की अनुगूंज भी। खतरों के साथ. उदासियों में हँसी की दरकार है। आस्था के बाजार बनते धर्म स्थलों पर प्रहार है। सच और झूठ के मकड़जाल से उबरने की नसीहत है। मेहनतकश मजदूरों और'अन्नदाता किसानों के प्रति गहरी संवेदना है। कचरा बीनते बच्चों के लिए मार्मिक पुकार है। लोक पीड़ा के करूण स्वर की हर कहीं अनुगूंज है । किन्नर जीवन के प्रति सामाजिक अपनत्व का भाव है। पर विषयों की विविधताओं के बीच ग्रहणकाल के आकाशीय अंधेरों की प्रतिच्छाया भी गहरी है। कवयित्री सामाजिक जीवन के अंधेरों को रेखांकित करती है। ग्रहण काल का अंधेरा सामाजिक जीवन के अंधेरों में रूपांतरित हो जाता है।

       ‌छन्द मुक्त इन कविताओं में वैसी लय तो नहीं है, पर कुछ कविताओं ने किसी एक पंक्ति की समानान्तरता या आवृत्ति के कारण अनुभूति पक्ष को गहराती जाती है। 'सोचो न तुम एक बार', 'स्लेट 'जैसी कविताएँ अलग अलग भावों- परिदृश्यों को बुनती हुई लयात्मक हो जाती हैं। इन कविताओं का वितान व्यापक है। बहुरंगी या चितकबरे परिदृश्यों में उसके चित्र भी हैं। परन्तु एहसासों के चाहत भरे वक्तव्यों को कलात्मक काव्य भाषा में लिपटा नहीं पाते। कुछ बिंबों ,प्रतीकों, शब्द- साहचर्यो के साथ यदि ये आकांक्षाएँ अंतर्ध्वनि बन जाएं तो जीवन की खुरदुरी चिन्ताएँ काफी असरदार हो सकती हैं। जटिलता से दूर इन कविताओं में आम जीवन की संप्रेषणीयशब्दावली है। यह पहला काव्य संगह जीवन की वास्तविकताओं, आकांक्षाओं और कवि के स्वत्व को रेखांकित अवश्य करता है।

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