Dr. Nagesh Pandey 'Sanjay' new book Natkhat Baal Kahaniyan review by Bhagwati Prasad Dwivedi, Hindi Bal Kahaniyan Pustak Samiksha, Children's Stories in Hindi.
Natkhat Baal Kahaniyan
डॉ. नागेश की कहानियों में नटखट बचपन
पुस्तक : 'नटखट बाल कहानियां'
लेखक : डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'
प्रकाशक : अनुराग प्रकाशन,
४७६०-६१,२३ अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली -११०००२
नटखट बाल कहानियां : पुस्तक समीक्षा
पिछले एक दशक से बालसाहित्य लेखन एवं प्रकाशन की दिशा में अभूतपूर्व विस्फोट की अनुगूंज सुनाई दे रही है। ख़ास तौर से, कोरोना काल और उसके बाद तो बालसाहित्य की बाढ़-सी आ गई है। जिस तरह से बाढ़ के पानी में ढेर सारे कूड़े-कचरे बहकर आ जाते हैं,वही स्थिति हो गई है बालसाहित्य की। यह तय कर पाना मुश्किल है कि वैसी पुस्तिकाओं के अंबार में बालसाहित्य कितना है? है भी या नहीं? बची-खुची बालपत्रिकाओं के संपादक से हुई बातचीत इस तथ्य का खुलासा करती है कि इस भीड़ में भी उन्हें बच्चों की अभिरुचि के अनुकूल स्तरीय रचनाओं को चुनने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। अब तो लेखन की शुरुआत सीधे -सीधे पुस्तक के प्रकाशन से ही हो जाती है और उसके साथ ही कुकुरमुत्ते -सी फैली राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से 'शिखर' सम्मानों की झड़ी लग जाती है। जब सही रचनाशीलता के मानदंड ही बदल गये हों तो फिर 'जेनुइन' सर्जकों का नेपथ्य में चले जाना ही नियति है।
मगर ऐसे संक्रमण काल में भी जब कोई अनूठी कृति सामने आती है तो हृदय आह्लादित हुए बगैर नहीं रहता। पिछले दिनों बाल कहानियों का एक ऐसा ही जीवंत संग्रह नटखट बाल कहानियां प्रकाशित हुआ है जिसके कथाकार हैं डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'।
नागेश जी छात्र जीवन से ही बालसाहित्य और साहित्यकारों से जुड़ गए थे। उन्हीं दिनों उनकी सृजनशीलता की प्रखरता संभावना जगाती थी। उनकी चुनिंदा २८ कहानियों को 'नटखट बाल कहानियां' में पढ़कर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि डॉ नागेश की कहानियों में बच्चों का दिल धड़कता है और उनकी कहानियां बालमन की पसंदीदा कहानियां हैं।
'नटखट बाल कहानियां' के रचनाकार बच्चों के मनोविज्ञान के कुशल पारखी हैं और उन्होंने नन्हें-मुन्नों के प्रिय विषयों व समस्याओं को मौजूदा दौर के बच्चों की आंखों से बारीकी से देखकर आत्मसात किया है। यही वजह है कि संग्रह की कहानियां बच्चों के सुकोमल मन-मस्तिष्क पर अपना गहरा प्रभाव छोड़ती हैं।
अधिकांश कहानियों के कथानक में प्रधान पात्र बच्चे ही हैं। ऐसे बच्चे, जो नटखट हैं, शरारती हैं। उनमें बाल सुलभ खिलंदड़ापन भी है और वे मासूमियत से भी लबरेज़ हैं।चंद कहानियां उन पशु-पक्षियों की भी हैं, जिनसे बच्चों का स्वभावत: आत्मीय और गहरा जुड़ाव होता है।
आम तौर पर बच्चे 'खेल-खेल में' ही कोई ऐसी शैतानी कर बैठते हैं कि पूरे परिवार को उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है और तब उन्हें बहुत अफसोस होता है। पहली कहानी 'खेल-खेल में' का राजू अपनी बहन नेहा के साथ ऐसी ही शैतानियां किया करता था ,पर एक छोटी -सी घटना उसकी सोच और जीवन की दिशा बदल देती है। कहानी कहन भी एक कला है और 'कहीं ऐसा हो तो?' के नानाजी ऐसी ही मज़ेदार कहानियां सुनाकर बच्चों का स्वस्थ मनोरंजन करते हैं। एक दिन वह प्रतिभाशाली प्रणय की कथा सुनाते हैं,जो हकलाहट के कारण सबकी हंसी का पात्र बन जाता है। अत्यंत रोचक ढंग से उसकी हकलाहट दूर करने की कथा सामने आती है।
संग्रह में विज्ञान और परियों को भी केंद्र में रखकर कथाएं रची गई हैं।सोनू के सपने में आई 'उड़न तश्तरी' की जादुई करामात जहां बच्चों को मंत्रमुग्ध कर देती है, वहीं 'लो माला' की परी बिरजू को आलस्य का त्याग कर क्रियाशील जीवन जीने का सबक देती है।
कुछ कहानियों के संवाद बहुत ही सहजता से कविताई में आये हैं और ऐसी कहानियां और भी सरस एवं प्रभावी बन पड़ी हैं। एक ऐसी ही कहानी है 'भूत का दूत', जिसमें भूत के भ्रम को तुकबंदियों में खारिज किया गया है।ऐसी ही कविता भरी कहानी है 'चूहे के पेट में चूहे कूदे', जिसमें चुनुआ चूहे को उसकी जिद और लालच की सजा मिलती है।ऐसी काव्य कथाओं का बच्चे अपने विद्यालय में मंचन भी कर सकते हैं।
बच्चों की दिलचस्पी जिन पशुओं में विशेष रूप से होती है,उनको कथाकार ने नायकत्व प्रदान किया है और कई सुरुचिपूर्ण कहानियों की सर्जना की है।'होली के गुब्बारे' में खों-खों बंदर है,सीटू खरगोश है और है आदू जिराफ़। 'भाग गए चूहे' में चूहों के साथ बिल्ली भी है।
'भूत का दूत' तो सुंदरवन के टोनू खरगोश और उसके परिवार की ही कथा है जिसमें टिंकू, रिमझिम के साथ कड़कू सुअर भी है।'अपमान का बदला' में दूसरों को चिढ़ाने वाले सोनू खरगोश और उससे उलट स्वभाव के हाथी के बच्चे की कथा है जिसमें हाथी का बच्चा सोनू की गंदी आदत छुड़वाकर ही दम लेता है।
बच्चे छोटी-मोटी शरारतें करते ही रहते हैं और उनकी शरारतों को केंद्र में रखकर लेखक ने कई यादगार कहानियां लिखी हैं,जो संग्रह की पठनीयता में चार चांद लगाती हैं।'नेहा ने माफी मांगी', 'शरारत', 'खेल-खेल में' आदि कुछ ऐसी ही कहानियां हैं जिनकी जान है रोचकता और संदेशमूलकता।'चतुर मूर्तिकार' जहां पौराणिक संदर्भ की रोचक कथा है, वहीं 'मूंगा' पर्यावरण के प्रति सचेत करने वाली वन्य जीवन की दास्तान।
नागेश जी कोई भारी-भरकम विषय नहीं उठाते।वह तो छोटे -छोटे उन तंतुओं को पकड़ते हैं,जो बच्चों की सोच और दिनचर्या में शामिल होते हैं।वह न तो कोई उपदेश देते हैं और न ही आरोपित ढंग से कोई शिक्षा या संदेश देने की कोशिश करते हैं। कहानी के पात्र बच्चे (आदमी के या जानवर के) ही खेल-खेल में कभी अपनी करनी पर पछतावा करते हैं तो कभी भविष्य में वैसा न करने की ठान लेते हैं।
कहानियों की भाषा इतनी सरस,चुटीली और प्रवहमान है कि पाठक कथा के साथ बहता चला जाता है और कहानी के चरित्र पाठकों के सुकोमल मन-मस्तिष्क को बांधे रखते हैं। लोकोक्तियां, मुहावरे इसकी चमक में चार चांद लगा देते हैं।आवरण और हर कहानी के साथ सृष्टि पाण्डेय का बालोचित चित्रांकन बच्चों का मन मोहित करने में सर्वथा समर्थ है।
वैसे तो एक सधे हुए बालसाहित्य समालोचक के रूप में डॉ नागेश पांडेय 'संजय' की विशिष्ट पहचान है,पर बालकथा के लीक से हटकर सर्जक के तौर पर उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
किस्सागोई उनकी कहानियों की खासियत है और कथा कहन की चुटीली शैली उन्हें अन्य कथाकारों से अलग करती है।कथा-कविता की जुगलबंदी तो और भी आनंददाई है। इसके मूल में है उनके भीतर आज भी बरकरार नटखट बचपन और यही नटखट, खिलंदड़ा बचपन उनकी प्रत्येक कहानी में बढ़ -चढ़कर अपनी जरूरी भूमिका अदा कर रहा है। यही नटखट बचपन और रचनाकार की दृष्टिसंपन्नता उनकी बाल कहानियों को जीवंतता व सार्थकता प्रदान करती है। कथाकार को मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं!
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